Buffalo cloning Technique at NDRI । Clonning Calf Tejas, Karnika, Sawtantar । Benefits

नमस्कार दोस्तों NDRI यानी राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान जो करनाल हरियाणा में स्थित है वहां एक higher yield यानी best quality का semen देने वाले नस्ल कि भैंस का बछड़ा क्लोन तकनीकी से विकसित किया है  जिसका नाम “तेजस” रखा गया हैं ये colne तकनीकी क्या और ये  कैसे lab में तैयार किये जाते हैं ये आपको video में आगे बताऊँगा इससे देश भर में दूध उत्पादन बढ़ाने और अच्छे quality के semen तैयार करने की दिशा में एक क्रांतिकारी कदम माना जा रहा हैं तथा किसानों की आय बढ़ाने में भी मदद करेगा।

https://youtu.be/ulv8iI5gKHM

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अब आप सोच रहे होंगे कि पेड़ पौधों कि नई वैरायटी या नई प्रजाति तो विकसित करते तो सुना है लेकिन ये गाय भैस के बछड़े का क्लोन विकसित करते नहीं सुना। तो आज के इसमें बात करेंगे 

कैसे ये बछड़े विकसित किये जा रहे हैं? 

जिस क्लोन तकनीकी से बछड़े विकसित किए जा रहे हैं वो clone तकनीक क्या हैं।

क्या इससे भविष्य में कोई लाभ होगा और सबसे महत्वपूर्ण बात इस तकनीकी से आपका क्या फायदा होने वाला हैं? 

तथा इसके साथ जानेंगे इसका उद्देश्य क्या हैं अर्थात ये क्यों तैयार किये जा रहे हैं?

इसकी ज़रूरत क्यो पडी? 

और क्लोन तकनीकी से क्या पहले भी बछड़े पैदा हुए हैं? 

इसके साथ और भी बहुत सारे प्रश्नों के जवाब इस वीडियो में जानने की कोशिश करेंगे। तो अगर दोस्तों आप चैनल पर पहली बार आए है तो चैनल को subscribe जरूर करे और video को like and share करे 

सबसे पहले जानते हैं Clone क्या होता हैं? 

क्लोन मतलब जैसे आप किसी भी पेज की xerox कॉपी किसी प्रिंटर से निकालते हैं जिसकी हम जितनी चाहे उतनी सेम कॉपी प्रिंट करवा सकते हैं ठीक उसी प्रकार हमारे किसी भी शरीर के अंग को लेकर डॉक्टर या वैज्ञानिक अपनी लैब में  हूबहू अपने जैसे दिखने वाला तथा अपने जैसे गुणों वाला एक या अनेक व्यक्ति तैयार कर कर सकते हैं । क्लोन एक ऐसी जैविक रचना है जो एकमात्र जनक माता अथवा पिता से अलैंगिक विधि द्वारा उत्पन्न होता है क्लोन’ अपने जनक से शारीरिक और आनुवंशिक रूप से पूरी तरह समान होते है. क्लोन के DNA का हर एक भाग अपने मूल प्रति के बिलकुल समान होता है

अब जानते हैं क्लोन से तैयार किए गए बछड़ो के बारे में 

NDRI ने देशी मवेशियों की नस्लों की क्लोनिंग शुरू की मुर्रा भैंस के क्लोन बछड़े से NDRI को 2009 में  पहली सफलता मिली हैंड गाइडेड क्लोनिंग तकनीक” के माध्यम से दुनिया के पहले भैंस के बछड़े का जन्म 6 फरवरी, 2009 को NDRI करनाल में हुआ था, जिसकी जन्म के 7 दिनों के भीतर मृत्यु हो गई थी।  इसके बाद दूसरे क्लोन से तैयार किए गए बछड़े “गरिमा” का जन्म 6 जून 2009 को हुआ जिसका जन्म 43 किलो वजन के साथ हुआ था। बछड़े का व्यवहार और शारीरिक मापदंड सामान्य हैं। 

मुर्रा भैंस की क्लोनिंग में मिली सफलता के बाद यहां के राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों ने गिर, साहीवाल और लाल शिंडी जैसी देशी गायों की क्लोनिंग का काम शुरू कर दिया है 

NDRI  करनाल के शोधकर्ताओं ने अब तक सफलतापूर्वक 25 क्लोन बछड़ों का जन्म कराने के बाद दो और क्लोन बछड़ों पैदा किया गया है जिसमें एक मादा और एक नर बछड़ा हैं चूंकि नर बछड़े का जन्म गणतंत्र दिवस पर हुआ था, इसलिए इसका नाम गंतंत्र रखा गया और मादा बछड़े का नाम कर्णिका रखा गया। NDRI ने अब तक 25 से अधिक क्लोन जानवरों का उत्पादन किया है, जिनमें से 11 जीवित हैं। 

NDRI के एक वरिष्ठ वैज्ञानिक मनोज कुमार सिंह ने कहा कि गणतंत्र एक कुलीन बैल का क्लोन है और कर्णिका को NDRI की एक उच्च उपज वाली भैंस की कोशिकाओं से बनाया गया है, जिसने पांचवें स्तनपान यानी 5 वे milking stage में 6,089 किलोग्राम दूध दिया है।  कुमार आगे बताते हैं कि यह एक और बड़ी उपलब्धि है और अब हमारा ध्यान क्लोन किए गए जानवरों की मृत्यु दर में सुधार करने पर है जो अब 2010 में 1% से बढ़कर लगभग 6% हो गया है।

पिछले दस वर्षों में देश में भैंसों के दूध, कान, मूत्र, रक्त और semen से कोशिकाओं का उपयोग करके भैंसों के 16 क्लोन विकसित किए गए हैं।

अब जानते हैं कैसे तैयार किये जाते है ये colne?

NDRI करनाल के वैज्ञानिकों ने उन्नत ‘हैंड-गाइडेड क्लोनिंग तकनीक’ के माध्यम से यह उपलब्धि हासिल की है। hand guided क्लोनिंग तकनीक पारंपरिक क्लोनिंग तकनीक का एक advanced modification है जिसके लिए महंगी माइक्रोमैनिपुलेटर मशीनों की आवश्यकता होती है।  इस तकनीक में, अपरिपक्व oocytes अंडाशय से पृथक होते हैं और इन-विट्रो में परिपक्व होते हैं। अर्थात अंडे से न्यूक्लियस को हाथ से पकड़कर महीन चाकू से अलग करके लिया जाता है, ताकि जेनेटिक मटेरियल जैसे क्रोमोसोम आदि सिंगल डोनर सेल से, यानी एक माता-पिता से आए। भ्रूण को देशी मवेशियों की दैहिक कोशिका यानी somatic cell के साथ विकसित किया जा रहा है somatic cell यानी वे कोशिकाएं जिनका उपयोग उत्तक और अंगों के निर्माण के लिए किया जाता है और एक बार इसे विकसित करने के बाद, इसे बछड़ा देने के लिए सरोगेट मां को स्थानांतरित कर दिया जाता हैं। सरोगेट माँ यानी वास्तविक मां की जगह एक दूसरी माँ बच्चे को जन्म देने के लिए अपनी कोख देती है. इसमे शुक्राणु और अंडाणु को Artificial lab में निषेचित करा कर भ्रूण को उस माँ की कोख में डाल दिया जाता है. इसमें एक प्रतिशत अंश भी सरोगेट मदर का नहीं होता है अतः इसमें कोई भी गुण या लक्षण सरोगेट मां के नहीं आते।

वैज्ञानिकों का मत है कि भ्रूण के क्रायोप्रिजर्वेशन को तकनीक के हिस्से के रूप में बनाने की आवश्यकता होगी, ताकि भ्रूण को कई जगहों पर ले जाया जा सके और इस्तेमाल किया जा सके। क्रायोप्रिजर्वेशन, एक ऐसी तकनीक है जिसके अंतर्गत डॉक्टर व वैज्ञानिक किसी भी जानवर, पशु-पक्षी और यहां तक कि इंसानों को भी सालों तक जीवित रख सकते हैं और उन्हें मरने से बचा सकते हैं इसमे तापमान इतना कम होता है कि आम इंसान इसमें एक पल भी ठहर नहीं सकता लेकिन इसी तापमान में वैज्ञानिक इंसानी शरीर को सालों तक सुरक्षित रखते हैं.

अब जानते हैं cloning से बछड़े पैदा करने की जरूरत क्यूँ पडी? 

1. हाल ही में वरिष्ठ वैज्ञानिक मनमोहन सिंह चौहान ने यहां ANI को बताया 2021-22 तक Artificial insemination यानी कृत्रिम गर्भाधान के लिए देश में semen की 14 करोड़ खुराक की जरूरत होगी, जबकि मौजूदा समय में इसकी उपलब्धता केवल 85 लाख खुराक ही है।”

2. विश्व की लगभग 58% भैंस केवल भारत में है हमारे पास पशुधन की एक बड़ी आबादी है, हम चारे और चारे के संसाधनों की भारी कमी का सामना कर रहे हैं।  एक और बड़ी समस्या जानवरों की बेहतर गुणवत्ता की कमी है और हमारी अधिकांश भैंस कम दूध देने वाली हैं।  यह देश के दुग्ध उत्पादन को बढ़ाने में बड़ी चुनौतियां पेश कर रहा है।  देश में लगभग 125 मिलियन दुधारू गाय और भैस हैं

3. देशी मवेशियों की संख्या घट रही है, जो चिंता का विषय है।

5. पशुओं में निरंतर घट रही हैं रोग प्रतिरोधक क्षमता जिसके कारण पशु निरंतर बीमारियों के शिकार हो रहे है 

5. देश में बढ़ती मानव आबादी को देखते हुए दूध की बढ़ती मांग की चुनौती का सामना करने के लिए “हैंडगाइडेड क्लोनिंग” की तकनीक एक लंबा रास्ता तय करेगी।

6. उच्च गुणवत्ता वाले semen की निरंतर कमी होना जिसके कारण पशुओं में बांझपन की समस्या बढ़ रही है

अब जानते हैं क्लोनिंग से बछड़े पैदा करने के उद्देश्य और मह्त्व के बारे में 

मुख्य उद्देश्य गायों की नस्लों को गुणा करना है अर्थात गायों की संख्या बढ़ाना । हमारे स्वदेशी जानवर रोग प्रतिरोधी हैं अर्थात उनमें रोगों के प्रति लड़ने की क्षमता अधिक होती है और देश की गर्म और आर्द्र जलवायु के अनुकूल हैं।  2014 में, केंद्र सरकार ने स्वदेशी नस्लों के विकास और संरक्षण के लिए राष्ट्रीय गोकुल मिशन (RGM) शुरू किया था।  यह पहल मिशन में एक कदम आगे इसे ध्यान में रखते हुए स्वदेशी मवेशियों के क्लोन को विकसित करने पर काम शुरू किया है। 

देश में देशी गायों की नस्लों का संरक्षण करना और उन्हें बढ़ाना है। फिलहाल वैज्ञानिकों ने गिर और साहीवाल पर काम शुरू कर दिया है और आने वाले दिनों में वे रेड शिंडी पर भी काम शुरू कर देंगे। 

इस तकनीकी से उच्च गुणवत्ता वाले सांडों की भारी कमी को दूर किया जा सकता है इससे वैज्ञानिक कम समय में सांडों की मांग और आपूर्ति के बीच के अंतर को कम कर सकेंगे। और कम से कम समय में अच्छी quality युक्त सांडों की आपूर्ति की जा सकती है। 

क्लोन किये गये जानवर न केवल देश में दूध उत्पादन में सुधार होगा, बल्कि कृत्रिम गर्भाधान के लिए अच्छी गुणवत्ता वाले वीर्य की मांग को पूरा करने में भी मदद मिलेगी।”

निष्कर्ष

मैं आशा करता हूं कि आपको मेरे द्वारा दी गई यह जानकारी जरूर पसंद आयी होगी और मेरी हमेशा यही कोशिश रहती है कि ब्लॉग पर आए सभी पाठकों को कृषि संबंधित सभी प्रकार की जानकारी प्रदान की जाए जिससे उन्हें किसी दूसरी साइट या आर्टिकल को खोजने की जरूरत जरूरत ना पड़े। इससे पाठक के समय की भी बचत होगी और एक ही प्लेटफार्म पर सभी प्रकार की जानकारी मिल जाएगी। अगर आप इस आर्टिकल से संबंधित अपना कोई भी विचार व्यक्त करना चाहते हैं तो नीचे कमेंट बॉक्स में अपना सुझाव अवश्य दें।

                   यहां आने के लिए धन्यवाद।

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