बोनसाई का अर्थ बोना पौधा है। जिसमें बड़े तथा विशालकाय पेड़ों को लघु आकार के पौधों में बदलकर आकर्षक रूप प्रदान किया जाता है। बोनसाई शब्द मूलतः चीनी शब्द पेंजाई का जापानी उच्चारण है। यह जापानी तकनीकी या कला है, लेकिन इसकी शुरुआत चीन से हुई थी। आजकल बोनसाई पेड़ के पारंपरिक उपयोग के अलावा सजाने और मनोरंजनात्मक उद्देश्य के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
क्या है बोनसाई ?
बोनसाई पौधे को गमले में इस प्रकार उगाया जाता है कि उसका प्राकृतिक रूप ज्यों का त्यों बना रहता है, लेकिन वे आकार में बोने रह जाते हैं। जिससे इन्हें घर के अंदर तथा बाहर दोनों जगह रखा जा सकता है।
जहां विशालकाय पेड़ जैसे बरगद को उगाने तथा वृद्धि के पश्चात बहुत अधिक जगह की आवश्यकता होती है। ठीक इसके विपरीत बोनसाई के रूप में बरगद के पेड़ को गमले में उगाया जा सकता है।
बोनसाई कैसे चुने?
1. वृक्षों का चुनाव।
अपने जलवायु के अनुकूल उचित प्रजाति का पेड़ चुने। सभी पेड़ एक जैसे नहीं होते उसी प्रकार सभी बोनसाई एक जैसे नहीं हो सकते हैं।
अपने क्षेत्र में कौनसा पेड़ उपयुक्त रह सकता हैं। पेड़ लगाने से पूर्व इस पर विचार-विमर्श करे। जैसे कुछ पेड़ ठंडे प्रदेशों में आसानी से उग सकते हैं, ऐसे पेड़ों का बोनसाई बनाकर आप गर्म जलवायु वाले क्षेत्रों में नहीं सफल हो सकते। खासतौर पर अगर आप खुले में पेड़ लगाने की सोच रहे हैं। अपने क्षेत्र की जलवायु के अनुसार चुनाव करने के लिए स्टोर के कर्मचारियों तथा अन्य कृषि विशेषज्ञों से सलाह ले सकते हैं।
जूनिपर, यदि आप नौसिखिया हो और बोनसाई पेड़ बनाना चाहते हो, तो आपके लिए जूनिपर एक उपयुक्त व अनुकूल किस्म हैं। जूनिपर सभी प्रकार के जलवायु में जीवित रह सकती है तथा इसकी देखरेख आसानी से हो जाती है। यह सदाबहार पेड़ होने के कारण इसकी पत्तियाँ नहीं झाड़ती जिससे इसकी कटाई और चटाई में आसानी रहती है।
कुछ कोनिफरस पेड़ों कि सामान्य तौर पर बोनसाई बनाकर खेती की जाती है, जैसे कि पाइन।
2. स्थान का चुनाव करें।
तय करें कि आप बोनसाई घर के अंदर या बाहर कहां रखना चाहते हैं, क्योंकि अंदर तथा बाहर रखे जाने वाले बोनसाई की जरूरतें अलग-अलग होती हैं। बाहर का वातावरण शुष्क तथा गर्म होता है जिसके कारण पौधे को अधिक पानी की आवश्यकता होती है, तथा अंदर रोशनी कम या ना के बराबर पौधे को मिलती है। इसलिए नीचे कुछ बोनसाई पेड़ों की सूची दी गई है, जिन्हें आप अपने उपयोग के अनुसार चुन सकते हैं।
👉 बाहर :- फ़िकस, हवायन अम्ब्रेला,सेरिस्सा, गारडेनीया, कमेलीया, किंग्सविल बाक्स्वुड।
👉 अन्दर :- जूनिपर, साइप्रेस, सीडर, मेपल, बर्च, बीच, गिंक्गो, लॉर्च, एल्म।
👉 सदाबहार वृक्ष :- अनार, आम, अमलताश, अमरूद, आकाशनीम, आंवला, बरगद, बॉटब्रूश, संतरा, सेमल, गूलर, गुलमोहर, पीपल, जकरेण्डा, लीची, चीड़, नीम, नींबू, केसिया प्रजाति आदि। पतझड़ वृक्ष: ओक, बेर, बर्च, देवदार, फर, नाशपति, सेमल, चमेली, बोगनवेलिया आदि।
3. बोनसाई का आकार या लंबाई निश्चित करें ।
आप अपने आवश्यकतानुसार लंबाई व आकार का चयन करें तथा निम्न बातों का ध्यान रखें और निर्णय लें।
👉 गमले का आकार जिसका इस्तेमाल करेंगे।
👉 आपके घर या ऑफिस में उपलब्ध जगह।
👉 घर या ऑफिस में उपलब्ध सूरज की रोशनी।
👉 आप कितना समय पेड़ की देखरेख में दे सकते हैं।
4. कैसा होगा बोनसाई पहले मन में उसका दृश्य बनाएं।
जैसे ही आप पेड़ के आकार और लम्बाई को तय कर लें, उसके पश्चात, नर्सरी या बोनसाई की दुकान पर जा कर पेड़ का चयन करें जिसे आप बोनसाई बनाना चाहते हैं। आप सबसे स्वस्थ, हरे पत्ते वाला, चमकीला और आकर्षक पेड़ का चयन करें, पर ध्यान रहे, की पतझड़ के मौसम में डेसिडुअस पेड़ (ऐसे पेड़ जिनके पत्ते सीजन के हिसाब से झड़ जाते हैं खासतौर पर पतझड़ के मौसम में) के पत्ते रंग बदलते हैं। पसंद करने के बाद, आप कल्पना करें की आपका पेड़ बोनसाई बनने के बाद कैसा दिखेगा। पेड़ की देख रेख और अपने पसंद के अनुसार आकार देने का अलग ही मज़ा है। इसको बड़ा करने में सालों लग जाते हैं। आप ऐसा पेड़ चुने जिसका आकार प्राकृतिक रूप से अच्छा हो और जो कटाई और छटाई के बाद आसानी से आपके मन मुताबिक़ सुंदर लगने लगे।
👉 ध्यान रहे की यदि, आप बीज से पेड़ को उगाना चाहतें हैं, तब आप पेड़ के विकास को हर पड़ाव पर जिस तरह चाहें वैसे नियंत्रित कर सकते हैं। हालाँकि, बीज से पूर्ण विकसित बोनसाई पेड़ होने में 5 साल का लम्बा समय लग सकता है। इस वजह से यदि, आपको देख रेख करना अच्छा लगता है तो आप पूर्ण विकसित पेड़ ही ख़रीदें।
👉 कटिंग से बोनसाई बनाना दूसरा विकल्प है। कटिंग अर्थात, पेड़ की कटी टहनियों को अलग से मिट्टी में लगा कर (अनुवांशिक रूप से समान) नया पेड़ उगा सकते हैं। बीज के बजाए, कटिंग से उगाए गए पेड़ को बढ़ने में देरी नहीं लगती है। इस प्रक्रिया में भी पेड़ के विकास के हर पड़ाव में आप उसको नियंत्रित कर सकते हैं।
5. गमले का चयन करें।
बोनसाई हेतु मुख्यतः उथले गमलों का प्रयोग किया जाता है। क्योंकि इनकी जड़ों के आसपास मिट्टी कम होती है। अपनी आवश्यकतानुसार वर्गाकार,आयताकार, गोलाकार, अंडाकार आदि आकार के गमलों का चयन कर सकते हैं। तथा साथ ही यह सुनिश्चित करें कि गमलों में जल निकास का बड़ा क्षेत्र होना चाहिए। जिसके लिए आप गमलों के नीचे तीन से चार छेद बनाएं। आप इसे ड्रिल भी कर सकते हैं।
पूर्ण रूप से विकसित वृक्ष को गमले में लगाएँ।
1. पेड़ को तैयार करें :–
अगर आप गंदे प्लास्टिक के गमले में बोनसाई का पेड़ दुकान से ले कर आए है या अपने द्वारा उगाया गया पौधा हो, तो इसे सुंदर गमले में लगाएँ। नए गमले में पेड़ ट्रांसफ़र करने से पहले तैयारी करनी पड़ती है। पहले, सुनिश्चित करें कि पेड़ को काट छाँट कर मनचाहा आकार दिया गया है कि नहीं। अगर आप नए गमले में लगाने के बाद भी उसे एक आकार देना चाहते हैं, तो तार पेड़ और टहनियों पर लपेट कर सुंदर आकार दें। इसकी मदद से पेड़ एक सुंदर आकार और निर्धारित दिशा में बढ़ सकेंगें। बोनसाई पेड़ के मनचाहे अच्छे आकार में हो जाने के बाद ही उसे दूसरे गमले में लगाएँ, इससे पेड़ को बहुत कष्ट होता है।
👉 बसंत ऋतु में ही, पतझड़ वाले डेसिडुअस पेड़ों को गमले में ट्रान्स्फ़र करने का बढ़िया समय है। बसंत में तापमान के बढ़ने से पेड़ जल्दी बढ़ते हैं, इस का तात्पर्य यह है कि कटाई और छटाई के बाद पेड़ जल्दी बहाल हो जाते हैं।
👉 आप गमला बदलने के कुछ समय पहले से पानी देना कम कर दें। सूखी ढीली मिट्टी पर आसानी से काम किया जा सकता है बनिस्पत गिली मिट्टी के।
2. गमले से पेड़ को निकाल कर उसकी जड़ साफ़ करें :-
पुराने गमले से पेड़ के तने को बिना नुक़सान पहुँचाए ध्यान से निकालें। पेड़ को गमले से निकालने के लिए खुरपी की आवश्यकता होती है। पेड़ की अतिरिक्त जड़ों को काटने के बाद ही नए बोनसाई के गमले में लगाएँ। यह अति आवश्यक है कि जड़ पर चिपकी मिट्टी को ठीक से झाड़ कर बिल्कुल साफ़ करें। इस प्रक्रिया में चोपस्टिक, जड़ को रखने के लिए रैक, चिमटी जैसे कुछ औजारों की मदद ली जा सकती हैं।
👉 जड़ों को बहुत साफ़ करने की ज़रूरत नहीं है, बस इतना साफ़ हो की उस पर काम करने यानी कटाई के समय, उसे ठीक से देख सकें।
3. जड़ों को काटें :-
जड़ों के बढ़ने को यदि, समय से नहीं रोका गया तो बोनसाई पेड़ गमले के मुक़ाबले अधिक बड़ा हो जाएगा। जड़ों की कटाई छटाई से बोनसाई पेड़ साफ़ सुथरे और उसका आकार भी क़ाबू में रहता है। बड़ी और मोटी जड़ों को और गमले की सतह की ओर जाती हुई जड़ों को काटें, बस पतली नाज़ुक जड़ों की जाल को ऊपरी सतह पर रहने दें। पेड, जड़ों के टिप से पानी खींचता है इसलिए छोटे गमले में एक मोटी गहरी जड़ के बजाए, जड़ों की जाल अच्छी रहती है।
4. गमला तैयार करें :-
पेड़ लगाने के पहले ताजी, नई मिट्टी, गमले में मनमुताबिक ऊँचाई तक डालें। ख़ाली गमले में सबसे नीचे दानेदार मिट्टी डालें। फिर महीन ढीली मिट्टी या पेड़ को बढ़ाने वाले तत्व मिट्टी में डालें। ऐसी मिट्टी का गमले में इस्तेमाल करें जिससे मट्टी में अतिरिक्त पानी निकल जाए, ठहरे नहीं। मिट्टी में अधिक पानी होने के कारण पेड़ की जड़ सड़ जाती है। गमले में थोड़ी जगह जड़ को ढ़कने के लिए छोड़ें।
5. पेड़ पॉट में लगाएँ :-
पेड़ को नए गमले के बिल्कुल बीच में रखें। इस महीन स्वस्थ मिट्टी को पेड़ की जड़ के जाल पर डाल कर ढकें। आप अपनी इच्छा अनुसार मॉस या बजरी बिछा सकते हैं। इससे पेड़ सुंदर भी दिखता है और साथ में एक जगह पर भी खड़ा रहता है।
👉 यदि गमले में पेड़ सीधे खड़ा नहीं हो रहा है, तो मोटे तार को गमले के नीचे पानी निकलने के छेद से अंदर ले जाएँ। जड़ की जाल को ठीक से बांधे जिससे वो एक जगह पर मज़बूती से रह सके।
👉 आप पानी के निकास के लिए छेदों पर जाली लगाएँ, जिससे मिट्टी का कटाव न हो, मिट्टी पानी के साथ गमले में बने छेद से बह न जाए।
6. आपके नए बोनसाई पेड़ की देखरेख :-
बोनसाई पेड़ इस पूरी प्रक्रिया में मार खाता है। इस लिए 2-3 हफ़्ते तक इस पॉट को पेड़ की छांव में छोड़ दें, जहाँ सूरज की रोशनी और तेज़ हवा से बचाव हो सके। पेड़ में पानी डालें, परंतु खाद का इस्तेमाल न करें जब तक पेड़ अच्छे से लग न जाए। कुछ समय के लिए जब तक पेड़ अपने नए माहौल यानी नए गमले का आदि न हो जाए तब तक उसे आराम करने दें।
👉 आपने ऊपर देखा की डेसिडुअस पेड़ साल में एक बार पतझड़ से गुज़र कर बाद में बसंत में जल्दी नए पत्तों के साथ बढ़ते हैं। इस वजह से ठंड की ससुप्त अवस्था के बाद, बसंत ऋतु में डेसिडुअस पेड़ों को दोबारा गमले में लगा सकते हैं। अंदर रखने वाला डेसिडुअस बोनसाई पेड़ है तो, मिट्टी को जड़ जब तक अच्छे से न पकड़ ले तब तक उसे बाहर रख सकते है जहाँ सूरज की रोशनी और बढे हुए तापमान से वो जल्दी बढ़ जाता है।
👉 बोनसाई पेड़ जब स्थापित हो जाए, तब आप कुछ और पेड़ों को पॉट गमले में लगा कर प्रयोग कर सकते हैं। इन पेड़ों को ठीक से एक साथ पोषित कर के और क्रम में लगा कर एक अद्भुत झाँकी सी बना सकते है। एक समान के पेड़ लगाएँ जिससे एक तरह की रोशनी और निश्चित पानी और रख रखाव के नियम से सब पेड़ों का एक साथ एक तरह का पोषण मिल जाता है।
बीज से पेड़ की उत्पत्ति।
1. बीज हासिल करें :-
एक बीज से पेड़ उगाना बहुत धीमी और लम्बी प्रक्रिया है। यह उस पेड़ पर निर्भर करता है जिस को आप विकसित कर रहे है, उसके तने 4-5 सालों में 1इंच (2.5cm) के व्यास या चौड़ा होने में लगा सकते हैं। कुछ बीज नियंत्रित दशा में उगाए जाते हैं। इस प्रक्रिया में बीज के अंकुरित होते ही आपका उसके वर्धन पर पूर्ण नियंत्रण रख सकते हैं। शुरुआत करने के लिए अपने मनपसंद पेड़ के बीज दुकान से लाएँ या ऐसे ही बाहर ज़मीन से उठा कर लाएँ।
👉 बहुत सारे पतझड़ वाले पेड़ जैसे ओक, बीच, मेपल के बीज की फलियाँ साल में एक बार निकलती हैं, आप तुरंत ही पहचान सकते हैं। इन बीजों से बोनसाई बनाने का आपका ये सब से बढ़िया चुनाव है, क्योंकि ये आसानी से मिल जाते हैं।
👉 ताज़े बीज इकट्ठा करने की कोशिश करें। पेड़ों के बीज, फलों और सब्ज़ियों के बीज से जल्दी अंकुरित होते हैं। उदाहरण के तौर पर, ओक के बीज सबसे ताज़े होते हैं क्योंकि, पतझड़ के मौसम में इनकी कटाई और उपज को एकत्र किया जाता है और अंत तक इसका रंग हरा बना रहता है।
2. बीज को अंकुरित होने दें :-
बोनसाई का पेड़ उगाने के लिए उपयुक्त बीज इकट्ठा करने के पश्चात आप उनकी देखभाल अच्छे से करें ताकि बीज ठीक से अंकुरित हो सकें। ग़ैर ट्रॉपिकल (non-tropical) जगहों पर, जहाँ अलग अलग मौसम साफ़ तौर पर आते जाते हैं, ऐसे में, पतझड़ के मौसम में बीज पेड़ से ज़मीन पर गिर कर ठंड के मौसम में निष्क्रिय (dormant) अवस्था में चले जाते हैं और फिर बसंत ऋतु में अंकुरित हो जाते हैं। जो पेड़ मूल रूप से उसी स्थान पर पाए जाते हैं, उनके बीज, ठंड के बाद बसंत ऋतु की हल्की गर्मी के आगमन पर, अंकुरित होने के लिए स्वतः तैयार रहते हैं। ऐसी स्थिति में इन बीजों को प्रकृतिक रूप से इन सभी मौसम से रूबरू होने दें, या रेफ़्रीजरेटर में रख कृत्रिम रूप से तापमान संतुलित कर रखें।
👉 यदि आप संतुलित वातावरण (temperate environment) वाली जगह पर रहते हैं, जहाँ हर मौसम साफ़ तौर पर बदलते हैं, ऐसी जगह पर आप बीज को ठंड के मौसम में मिट्टी से भरे गमले में दबा कर बसंत ऋतु तक रख दें। अन्यथा, आप बीज को सम्पूर्ण ठंड तक रेफ़्रीजरेटर में रख दें। अपने बीजों को अंकुरित करने वाले नम माध्यम (जैसे वर्मिक्युलाइट) में लपेट कर, ज़िप लॉक वाले प्लास्टिक के बैग में रख दें, और बसंत ऋतु में जब बीज अंकुरित होने लगें, तब निकाल लें।
👉 यदि आप पतझड़ से बसंत तक के तापमान के धीरे धीरे ठंडे होने और फिर से गर्म होने की प्राकृतिक प्रक्रिया को प्रोत्साहित करना चाहते हैं, तो आरम्भ में बीजों को फ्रिज में नीचे की सतह पर रखें। अगले दो हफ़्तों में आप बीजों को धीरे धीरे एक शेल्फ़ के बाद दूसरे ऊपरी शेल्फ़ पर रखते जाएँ, जिससे अंत में बीज कूलिंग यूनिट के ठीक नीचे पहुँच जाएँ। फिर, ठंड का मौसम प्रोत्साहित करने के बाद, उसकी ठीक विपरीत प्रक्रिया से बीजों को एक शेल्फ़ के बाद दूसरे नीचे वाले शेल्फ़ में रखते हुए नीचे ले जाएँ।
3. अंकुरित पौधों को बीज की ट्रे या गमले में लगाएँ :-
जब बीज अंकुरित होकर पौधे बनने लगें तब उन्हें अपनी पसंद के अनुसार मिट्टी वाले गमले में लगा दें। यदि आपने बीजों को प्राकृतिक रूप से अंकुरित करने के लिए गमले में छोड़ दिया था, तो आप उन अंकुरित पौधों को उसी गमले में रहने दें जिसमें वह अंकुरित हो रहे थे। अगर नहीं, तो फ़िर आप उन स्वस्थ्य अंकुरित पौधों को फ्रिज से निकाल कर मिट्टी वाले गमले में या बीज की ट्रे में स्थानांतरित कर दें। मिट्टी में छोटा से गड्ढा कर के अंकुरित पौधे को ऐसी तरह से रखें कि अंकुरित पत्तियाँ ऊपर की तरफ़ और जड़ नीचे की तरफ़ हो। बीज में तुरंत पानी डालें। हर समय यह सुनिश्चित करें कि बीज के आसपास की मिट्टी हमेशा नम रहे परंतु अत्यधिक पानी न हो जाए, जो कीचड़ बना दे, जिससे पौधों के सड़ने का ख़तरा हो जाए।
👉 पहले 5 या 6 सप्ताह तक खाद न डालें जब तक पौधे अपने नए बरतन में ठीक से स्थापित नहीं हो जाते हैं। बहुत थोड़ी मात्रा में खाद का प्रयोग शुरू करें, अन्यथा खाद में मौजूद रसायन के अधिक अनावरण की वजह से पौधों की नर्म जड़ों के जलने का ख़तरा हो सकता है।
4. पौधों को अनुकूल तापमान वाली जगह पर रखें :-
पौधों के बढ़ने के समय यह आवश्यक है की पौधों को अत्यधिक ठंड से बचाएँ अन्यथा ठंड से पौधों के मरने का ख़तरा रहता है। यदि आप गर्म वातावरण वाली जगह में रहते हैं, तो आप पौधों को ध्यानपूर्वक बाहर छाँव में रख दें, जहाँ धूप और तेज़ हवा से बचाव हो सकेगा, बशर्ते कि, आपके चुने हुए पेड़ की नस्ल प्राकृतिक रूप से वहाँ के भौगोलिक क्षेत्र में जीवित रहने में सक्षम हैं कि नहीं। यदि, आप ट्रॉपिकल पेड़ या ग़ैर मौसम में पौधे लगा रहे हों, तो पौधों को अंदर रखें या ग्रीन हाउस में रखें जहाँ थोड़ी गर्मी होती है।
👉 बावजूद इसके की आप पौधे कहाँ रखते हैं, यह ध्यान अवश्य रखें कि पौधों को ज़्यादा मात्रा में नहीं, परंतु अकसर पानी देना सुनिश्चित करें। मिट्टी को नम रखें पर कीचड़ न होने दें।
5. पौधों का ध्यान रखें :-
पौधों के बढ़ते समय लगातार पानी देना और ध्यानपूर्वक धूप दिखाना सुनिश्चित करें। पतझड़ वाले पौधों (deciduous) में दो छोटी पत्तियाँ निकलेंगी, जिन्हें कोटीलेडन कहते हैं। ये वास्तविक पत्तियों के निकलने के पहले सीधे बीज में से निकलती हैं और बढ़ती जाती हैं। पेड़ के बढ़ने पर (पेड़ों के बढ़ने में वर्षों लग सकते हैं), उन्हें उनके आकार के अनुसार, बड़े बर्तनों या गमलों में स्थानांतरित करते जाएँ जिससे उनकी बढ़ोत्तरी तब तक समायोजित होती रहे जब तक वो आपकी इच्छानुसार बोनसाई पेड़ का आकार नहीं प्राप्त कर लेते हैं।
👉 जब आपका पेड़ स्थायी रूप से स्थापित हो जाए, तब आप उसे सुबह की धूप और दोपहर की छाँव पाने के लिए बाहर रख सकते हैं, परंतु यह ध्यान रहे की आपके पेड़ की नस्ल ऐसी हो जो प्राकृतिक रूप से आपके भौगोलिक क्षेत्र में रहने में सक्षम हों।
बोनसाई पेड़ों की प्रमुख शैलियां।
1. सीधे वृक्ष:
इस प्रकार के पेड़ों में फर, चीड़, सिल्वर ऑक जैसे वृक्ष आते हैं जो सीधे बड़े होते हैं।
2. दो तने वाले वृक्ष:
इसमें पौधे के दो तने को विकसित होने दिया जाता है।
3. अनेक तने वाले वृक्ष:
इस प्रकार के पौधे में अनेक तने विकसित होने दिए जाते हैं।
4. तिरछा बोनसाई:
इस प्रकार के बोनसाई में पौधे को 45 डिग्री के मोड़ पर घुमा दिया जाता है और उसी दिशा में बढ़ने दिया जाता है।
5. झाड़ू नुमा बोनसाई:
इस प्रकार के बोनसाई में पौधे की शाखाओं को तार से बांध दिया जाता है। देखने में यह झाड़ू जैसा लगता है।
6. चट्टानी बोनसाई:
इस प्रकार के बोनसाई के पेड़ में पत्थर, चट्टान के टुकड़े, कंकण, गिट्टी आदि उपर ही सतह पर रख दिये जाते हैं। इससे उसकी सुंदरता बढ़ जाती है।
7. कैस्केड बोनसाई:
इस प्रकार के बोनसाई पौधे के तने को आधा झुका दिया जाता है। गमले के पेंदे से नीचे तक झुकाया जाता है। जरूरत पड़ने पर तांबे के तारों से बाँधा जाता है।
बोनसाई पेड़ों के निम्नलिखित लाभ हैं।
1. बोनसाई के पेड़ छोटे आकर्षक दिखते हैं। इसे लगाकर आप अपने घर की सुंदरता बढ़ा सकते हैं।
2. जिन लोगों के पास जगह की कमी है वह भी बोनसाई के पेड़ लगाकर अपने घर में हरियाली बढ़ा सकते हैं।
3. दूसरे पेड़ पौधों को अधिक पानी और अधिक देखरेख की आवश्यकता होती है, परंतु बोनसाई के पेड़ छोटे होते हैं, इसलिए इनकी देखरेख में मामूली समय खर्च होता है। इस पौधे की सिंचाई में बहुत ही कम पानी लगता है।
4. आजकल बोनसाई पेड़ एक अच्छे रोजगार के रूप में उभरा है। आप भी बोनसाई पेड़ों की नर्सरी लगाकर इसका व्यापार शुरू कर सकते हैं और अपनी आमदनी बढ़ा सकते हैं।
5. बुजुर्ग लोग बोनसाई पेड़ लगाकर और उसकी देखरेख करके अपना समय आसानी से काट सकते हैं।
6.घर में बोनसाई के पेड़ लगाकर बच्चों और भावी पीढ़ी को पेड़ पौधों के महत्व के बारे में आसानी से बताया जा सकता है।
बोनसाई के पेड़ों से निम्नलिखित नुकसान हैं।
1. नेगेटिव ऊर्जा वाले बोनसाई पेड़ों को घर में नहीं लगाना चाहिए। नागफनी का पौधा इसी प्रकार का नकारात्मक उर्जा वाला पौधा माना जाता है।
2. कुछ लोगों का मानना है कि जिस तरह बोनसाई पेड़ों का विकास रुक जाता है वे जिस घर / आफिस में होते हैं उसका विकास रोक देते हैं।
3. सूखे मुरझाए और टूटे हुए बोनसाई के पौधे नकारात्मक ऊर्जा पैदा करते हैं।
4. कांटेदार बोनसाई के पौधों को घर में नहीं लगाना चाहिए। वह हाथों में चुभकर नुकसान पहुंचा सकते हैं। बच्चों को भी नुकसान पहुंचा सकते हैं।
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निष्कर्ष
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