Baby Corn :- बेबी कॉर्न की खेती से लाखों रुपए कमाए।

बेबी कॉर्न मक्का का भुट्टा है, जो सिल्क (भुट्टा के ऊपरी भाग में आई रेशमी कोपले) कि 1 से 3 सेंटीमीटर लंबाई वाली अवस्था और सिल्क आने के 1 से 3 दिन के अंदर ऋतु के अनुसार पौधा से तोड़ लिया जाता है। इस अवस्था में दाने अनिश्चित होते हैं। 

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अच्छे बेबी कॉर्न की लंबाई 6 से 10 सेंटीमीटर, व्यास 1 से 1.5 सेंटीमीटर एवं रंग हल्का पीला होना चाहिये। यह फसल खरीद (गर्मी) में लगभग 50 से 60 दिनों और रबी (सर्दी) में 110 से 120 दिनों एवं जायद (बसंत) में 70 से 80 दिनों में तैयार हो जाती है। एक वर्ष में बेबी कॉर्न की 3 से 4 फसलें आसानी से ली जा सकती है। बेबी कॉर्न की निश्चित विपणन (मार्केटिंग) तथा डिब्बाबंदी (कैनिंग) होने से अधिक लाभ प्राप्त किया जा सकता है। इसका उत्पादन विश्व के कई देशों में होता है एवं विभिन्न व्यंजनों के रूप में उपयोग में लाया जाता है। इसकी खेती से पशुओं के लिए हरा चारा भी मिल जाता है।

बेबी कॉर्न का पोष्टिक महत्व :-

1. यह एक स्वादिष्ट पौष्टिक आहार है एवं पत्तों में लिपटे रहने के कारण कीटनाशक रसायनों के प्रभाव से लगभग मुक्त होती है।
2. इसमें फास्फोरस प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होती है। इसके अलावा इसमें कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, कैल्शियम, लोहा एवं विटामिन भी पाई जाती है।
3. पाचन (डाइजेशन) की दृष्टि से भी यह एक अच्छा आहार है।

बेबी कॉर्न का उपयोग :-

1. इसे कच्चा या पक्का कर खाया जा सकता है।
2. इसके अनेक प्रकार के व्यंजन बनाए जा सकते हैं जैसे :- सूप, सलाद, सब्जियां, कोफ्ता, पकोड़ा, भुजिया, रायता, खीर, लड्डू, हलवा, आचार, कैंडी, मुरब्बा, बर्फी, जैम आदि।

उत्पादन  की विधि:-

बेबी कॉर्न की उत्पादन तकनीक कुछ विभिन्नता के अलावा सामान्य मक्का की ही तरह है। ये विभिनता इस प्रकार है, जैसे :-
1. अगेती परिपक्वता (जल्द तैयार होने वाली) वाली एकल क्रॉस संकर मक्का की किस्मों को उगाना।
2. पौधों की अधिक संख्या ।
3. झुंडो को तोड़ना।
4. भुट्टा में सिल्क आने के 1 से 3 दिन के अंदर भुट्टा की तुडाई।

बेबी कॉर्न की अधिक पैदावार लेने के लिए निम्न विधियों को अपनाना चाहिए,जो इस प्रकार है :-

तुडाई :-

बेबी कॉर्न की तुड़ाई के लिए निम्न बातों का ध्यान रखना बहुत ही जरूरी होता है, जैसे :-

1. बेबी कॉर्न की भुट्टा (गुल्ली) को 1 से 3 सेंटीमीटर सिल्क आने तक आने पर तोड़ लेनी चाहिए।
2. भुट्टा तोड़ते समय उसके ऊपर की पत्तियों को नहीं हटाना चाहिए।
3. पतियों को हटाने से यह जल्दी खराब हो जाती है।
4. खरीफ में प्रतिदिन और रबी में 1 दिन के अंतराल पर सिल्क आने के 1 से 3 दिन के अंदर भुट्टो को तुड़ाई कर लेनी चाहिए।
5. एकल क्रॉस संकर मक्का में 3 से 4 तुड़ाई जरूरी होता है।

तुड़ाई उपरांत प्रबंधन :-

इसके लिए निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए :-
1. बेबी कॉर्न का छिलका तुडाई के बाद उतार लेना चाहिए।
2. यह कार्य छायादार व हवादार जगहों पर करना चाहिए।
3. ठंडी जगहों पर बेबी कॉर्न का भंडारण करना चाहिए।
4. छिलका उतरे हुए बेबी कॉर्न को ढेर लगाकर नहीं रखना चाहिए, बल्कि प्लास्टिक की टोकरी, थैला या अन्य कंटेनर में रखना चाहिए।
5. बेबी कॉर्न को तुरंत मंडी या संसाधन इकाई (प्रोसेसिंग प्लांट) में पहुंचा देना चाहिए।

विपणन (मार्केटिंग) :-

1. इसकी बिक्री बड़े शहरों (जैसे – दिल्ली, मुंबई, कोलकाता आदि) के मंडियों में की जा रही है।
2. कुछ किसान बंधु इसकी बिक्री सीधे ही होटल, रेस्टोरेंट, कंपनियों (रिलायंस, सफल आदि) को कर रहे हैं।
3. कुछ यूरोपियन देशों तथा यूएसए में बेबीकॉर्न के आचार एवं कैंडी की बहुत ही ज्यादा मांग है।
4. उत्तर भारत में कुछ कंपनियां किसानों से सीधा अनुबंध भी कर रही है।

प्रसंस्करण (प्रोसेसिंग) :-

1. नजदीक के बाजार में बेबी कॉर्न (छिलका उतरा हुआ) को बेचने के लिए छोटे-छोटे पॉलीबैग में पैकिंग किया जा सकता है।
2. इसे अधिक समय तक संरक्षित रखने के लिए कांच (शीशा) की पैकिंग सबसे अच्छी होती है।
3. कांच की पैकिंग में 52% बेबी कॉर्न और 48% नमक का घोल होता है।
4. बेबी कॉर्न को डिब्बा में बंद करके दूर के बाजार अंतरराष्ट्रीय बाजारों में बेचा जा सकता है।
5. कैनिंग (डिब्बाबंदी) की विधि निम्न फ्लो-डायग्राम में प्रदर्शित है, जैसे :-
छिलका उतरा हुआ बेबी कॉर्न – सफाई करना, उबालना, सुखाना, ग्रेडिंग करना, डिब्बा में डालना, नमक का घोल डालना, वायुरुद्ध करना, डिब्बा बंद करना, ठंडा करना, गुणवत्ता की जांच करना आदि।

प्रिजर्वेशन :-

बेबी कॉर्न को डिब्बा में डालने के बाद 2% नमक एवं 98% पानी का घोल बनाकर या 3 प्रतिशत नमक, 2% चीनी, 0.3% साइट्रिक एसिड और शेष पानी का घोल बनाकर डिब्बा में डाल देना चाहिए।

आर्थिक लाभ :-

बेबी कॉर्न की 1 साल में 3 से 4 फसलें ली जा सकती हैं, इस प्रकार के किसान बंधु 1 से 1.5 लाख शुद्ध लाभ प्राप्त कर सकते हैं, प्रति एकड़ इसके अलावा अतिरिक्त लाभ लेने के लिए बेबीकॉर्न के साथ अंतर्वर्ती फसल भी ली जा सकती है।

बेबी कॉर्न की खेती के लाभ :-
1. फसल विविधीकरण।
2. किसान भाइयों, ग्रामीण महिलाओं और नवयुवकों को रोजगार के अवसर प्रदान करना।
3. अल्प अवधि में अधिकतम लाभ कमाना।
4. निर्यात द्वारा विदेशी मुद्रा का अर्जन एवं व्यापार में बढ़ावा।
5. पशुपालन को बढ़ावा देना।
6. मानव आहार संसाधन उद्योग (फूड प्रोसेसिंग इंडस्ट्री) को बढ़ावा देना।
7. अंतरा-सस्य (इंटरपिंग) द्वारा अधिक आय अर्जित करना।

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निष्कर्ष

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