भारत का जैविक खाद्य बाजार 2020 में 849.5 मिलियन अमरीकी डॉलर था। आज बाजार 2021 में 20.5% की CGAR(Compound annual growth rate) से बढ़ने की उम्मीद है। और 2026 में 2601 मिलियन अमरीकी डालर के मूल्य तक पहुंचने का पूर्वानुमान लगाया गया हैं।
जैविक खेती (Organic Farming):-
👉 वह कृषि जिसमें संश्लेषित रसायनों, संश्लेषित उर्वरकों तथा संश्लेषित कीटनाशकों का प्रयोग नहीं किया जाता या ना के बराबर प्रयोग करने पर आधारित है।
👉 मिट्टी को प्रदूषित होने तथा मानव को कैंसर जैसे सैकड़ों बीमारियों के जाल में फंसने से बचाती है। मिट्टी की उर्वरा शक्ति को बनाए रखने के लिए हरी खाद, कंपोस्ट, FYM(फार्म यार्ड मैंनयोर)तथा जैव उर्वरकों का प्रयोग किया जाता है।
जैविक खेती की परिभाषा :-
👉 ऐसी खेती जिसमें दीर्घकालीन व स्थिर उपज प्राप्त करने के लिए कारखानों में निर्मित रसायनिक उर्वरकों , कीटनाशकों व खरपतवारनाशियों तथा वृद्धि नियन्त्रक का प्रयोग न करते हुए जीवांशयुक्त खादों का प्रयोग किया जाता है। तथा मृदा एवं पर्यावरण प्रदूषण पर नियंत्रण होता है जैविक खेती कहलाती है।
परिचय:- संपूर्ण विश्व में बढ़ती जनसंख्या एक गंभीर समस्या होने के साथ बढ़ती जनसंख्या के लिए खाद्यान्न की आपूर्ति करने की दिशा में उठाए गए कदम आज की पीढ़ी को धीरे-धीरे स्वास्थ्य की दृष्टि से खोखला कर रही है। और यह बहुत ही चिंताजनक हो रहा है।
👉 प्राचीन काल में मानव स्वास्थ्य के अनुकुल तथा प्राकृतिक वातावरण के अनुरूप खेती की जाती थी, जिससे जैविक और अजैविक पदार्थों के बीच आदान-प्रदान का चक्र (पारिस्थितिकी तंत्र) निरन्तर चलता रहा था, जिसके फलस्वरूप जल, भूमि, वायु तथा वातावरण प्रदूषित नहीं होता था।
👉 भारत में हरित क्रांति के साथ ही रासायनिक खादों जहरीले कीटनाशकों व उर्वरकों का प्रयोग करने का प्रचलन बढ़ा जो आधुनिक दुनिया के लिए आज एक अभिशाप साबित हो रहा है। और मानव तथा संपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र को कई बीमारियों के जाल में जकड़ लिया जिसे अब बाहर निकलना मुश्किल होता जा रहा है।
👉 रासायनिक उर्वरक भूमि मानव तथा संपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र के संतुलन को खराब कर चुके हैं यद्यपि अभी भी समय रहते जैविक खेती नहीं अपनाई गई तो भविष्य में खतरा बहुत बढ़ जाएगा।
क्या हैं जैविक खेती का इतिहास ?
👉 कहते हैं कि अगर हम हरित क्रांति नहीं लाते और फर्टिलाइजर तथा पेस्टिसाइड का इस्तेमाल हम नहीं करते तो हमारा देश भूखा मरता यह बहुत बड़ा झूठ है। जो लोगों के दिलों दिमाग में बड़ी ही होशियारी से केमिकल कंपनियों तथा उनसे मिले हुए लोगों द्वारा मोटा पैसा कमाने के लिए बिठाया गया है। यह झूठ है कि हम हरित क्रांति के बिना अर्थात बिना केमिकल के अधिक उत्पादन नहीं कर पाते।
👉पहली बात आज हम पहले की तुलना में ज्यादा आयात कर रहे हैं आज जो दाम बढ़ रहे हैं इसलिए बढ़ रहे हैं कि हमारा सारा दाल गायब हो गया है। हरित क्रांति की वजह से सारे तेल गायब हो गए हैं, क्योंकि यह मोनोकल्चर होता है। इसमें एक ही फसल उगा सकते हैं बस गेहूं, चावल या कपास पंजाब में कुछ और देखने को नहीं मिलता हैं।
👉 आज हम 70% दाल व तेल आयात पर निर्भर पर हो गए हैं। दाल व तेल हम खुद उगा सकते हैं और मिश्रित खेती करके अच्छी खेती कर रहे होते जब लोग इकट्ठा होकर काम करते हैं तो ज्यादा काम एक साथ होता है। ठीक इसी प्रकार पौधे भी इकट्ठा काम करते हैं तो ऐसा ही होता है। जब गेहूं के साथ दाल को मिश्रित खेती के रूप में उगाएंगे तो दाल का पौधा हवा से नाइट्रोजन प्राप्त करके गेहूं के पौधे को देगा इसके लिए यूरिया या अन्य फर्टिलाइजर डालने की आवश्यकता नहीं है। इसलिए इसे जैव विविध जैविक खेती कहते हैं क्योंकि विविधता से ही प्रकृति चलती है।
मिथक और सत्य
👉 लोग कहते हैं हमने रासायनिक में नए बीज का इस्तेमाल करके उत्पादन बढ़ाया है तो आप गणना कीजिए की पूरी जमीन पंजाब राज्य की अकेली धान व गेहूं उगाएगी (जिसे मोनोक्रॉपिंग कहते हैं) तो ज्यादा चावल में गेहूं तो होगा ही।आप जब दाले चना, उड़द, मूंग, तुअर नहीं उगायेगे तो उतना उत्पादन तो गेहूं व चावल का बढ़ेगा ही( यह रिप्लेसमेंट का फैक्टर है)।
👉 पेस्टिसाइड एक ऐसी बीमारी है। जब इसके चक्कर मैं घुस जाओ तो सर्वप्रथम एक स्प्रे करोगे फिर चार स्प्रे करोगे फिर 30 करोगे फिर 60 करोगे और आप को और अधिक करने पड़ेगा। क्योंकि जो एक प्रकृति की व्यवस्था है कीटाणुओं को रोकने की उसे आप तो उड़ रहे हैं।
पेस्टिसाइड कहां है ?
👉 यह अंदर है हर कोशिका के अंदर है। तो आप सोचते हैं कि सेब का छिलका उतार दिया तो पेस्टिसाइड निकल गया लेकिन नहीं क्योंकि पेस्टिसाइड उसके अंदर है इसका प्रभाव किसानों की आर्थिक स्थिति पर पड़ा पड़ा है। जिसको गुमराह किया गया है। उसको बोला गया कि स्प्रे करो क्योंकि अच्छी दवा है और डालो जितनी डालोगे उतनी अच्छा काम करेगी और उत्पादन बढ़ेगा।
👉 जब हम डॉक्टर के पास इलाज के लिए जाते हैं तो वह चेतावनी देता है कि इसके साथ ये नहीं खाना, यह खाना है तथा इतनी देर का गैप रखना है। और जहर के लिए पूरी आजादी दी गई है कि खाओ जितना खाना है उतना खाओ क्योंकि जब दवा कंपनियां कमाई करेगी तो सरकार को भी अपना राजस्व प्राप्त होगा जिससे सभी एक दूसरे से जुड़ कर लूट मचाने में लगे हुए हैं।
👉 अगर हम भारत को शाइनिंग मानते हैं और इमर्जिंग ग्लोबल सुपर पावर मानते हैं। उसका मापन होना चाहिए कि भारतवासी कितने संपन्न हुए हैं। किसान कितने संपन्न हुए हैं। भारत में ढाई लाख किसानों ने आत्महत्या की वह आत्महत्या जुड़ी हुई है कर्ज से और बीज व जहरीले रासायनिको के लिए, लिए गए कर्ज से तथा दूसरी तरफ बीमारी बढ़ रही है।
👉अब हम रसायनिक खादों, जहरीले कीटनाशकों के उपयोग के स्थान पर, जैविक खादों एवं दवाईयों का उपयोग कर, अधिक से अधिक उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं। जिससे भूमि, जल एवं वातावरण शुद्ध रहेगा और मनुष्य एवं प्रत्येक जीवधारी स्वस्थ रहेंगे। इसलिए इस प्रकार की उपरोक्त सभी समस्याओं से निपटने के लिये गत वर्षों से निरन्तर टिकाऊ खेती के सिद्धान्त पर खेती करने की सिफारिश की गई। जिसे प्रदेश के कृषि विभाग ने इस विशेष प्रकार की खेती को अपनाने के लिए बढ़ावा दिया जिसे जैविक खेती प्रचार-प्रसार कर रही है।
जैविक खेती की शुरुआत कैसे व कहा से हुईं?
👉 म.प्र. में सर्वप्रथम 2001-02 में जैविक खेती का अन्दोलन चलाकर प्रत्येक जिले के प्रत्येक विकास खण्ड के एक गांव में जैविक खेती प्रारम्भ कि गई और इन गांवों को जैविक गांव का नाम दिया गया।
👉 इस प्रकार प्रथम वर्ष में कुल 313 ग्रामों में जैविक खेती की शुरूआत हुई। इसके बाद 2002-03 में दि्वतीय वर्ष में प्रत्येक जिले के प्रत्येक विकासखण्ड के दो-दो गांव, वर्ष 2003-04 में 2-2 गांव अर्थात 1565 ग्रामों में जैविक खेती की गई। वर्ष 2006-07 में पुन: प्रत्येक विकासखण्ड में 5-5 गांव चयन किये गये। इस प्रकार प्रदेश के 3130 ग्रामों जैविक खेती का कार्यक्रम लिया जा रहा है।
👉 मई 2002 में राष्ट्रीय स्तर का कृषि विभाग के तत्वाधान में भोपाल में जैविक खेती पर सेमीनार आयोजित किया गया। जिसमें राष्ट्रीय विशेषज्ञों एवं जैविक खेती करने वाले अनुभवी कृषकों द्वारा भाग लिया गया जिसमें जैविक खेती अपनाने हेतु प्रोत्साहित किया गया। प्रदेश के प्रत्येक जिले में जैविक खेती के प्रचार-प्रसार हेतु चलित झांकी, पोस्टर्स, बेनर्स, साहित्य, एकल नाटक, कठपुतली प्रदर्शन जैविक हाट एवं विशेषज्ञों द्वारा जैविक खेती पर उद्बोधन आदि के माध्यम से प्रचार-प्रसार किया तब जाकर कृषकों में जन जाग्रति फैलाई जा रही है।
👉 जैविक खेती से मानव स्वास्थ्य का बहुत गहरा सम्बन्ध है। इस पद्धति से खेती करने में शरीर तुलनात्मक रूप से अधिक स्वस्थ्य रहता है। औसत आयु भी बढती है। हमारे आने वाली पीढ़ी भी अधिक स्वास्थ्य रहेंगी। कीटनाशक और खाद का प्रयोग खेती में करने से फसल जहरीली होती हैं। जैविक खेती से फसल तथा स्वास्थ्य दोनों जल्दी खराब नहीं होता है। और यह खेती रासायनिक से ज्यादा पैदावार देती है।
जैविक खेती से होने वाले लाभ
कृषकों की दृष्टि से लाभ :-
1. किसान स्वस्थ रहेगा क्योंकि जब किसान खेत में रासायनिक कीटनाशकों का छिड़काव करता है तो वह स्वसन के द्वारा शरीर में जाकर गंभीर समस्या उत्पन्न करते हैं।
2. किसानों को कम लागत में अधिक मुनाफा होगा।
3. भूमि की उपजाऊ क्षमता में वृद्धि हो जाती है।
4. सिंचाई अंतराल में वृद्धि होती है।
5. रासायनिक खाद पर निर्भरता कम होने से लागत में कमी आती है।
6. फसलों की उत्पादकता में वृद्धि।
7. बाज़ार में जैविक उत्पादों की मांग बढ़ने से किसानों की आय में भी वृद्धि होती है |
मिट्टी की दृष्टि से :-
1. जैविक खादों के प्रयोग से भूमि में उपस्थित उपयोगी सूक्ष्म जीवों को हानि नहीं पहुंचेगी जिसके कारण मिट्टी की 2. गुणवत्ता में सुधार आएगा।
3. भूमि की जल धारण क्षमता बढ़ती हैं।
4. भूमि से पानी का वाष्पीकरण कम होगा।
पर्यावरण की दृष्टि से:-
1. भूमि के जल स्तर में वृद्धि होती है।
2. मिट्टी, खाद्य पदार्थ और जमीन में पानी के माध्यम से होने वाले प्रदूषण में कमी आती है।
3. कचरे का उपयोग खाद बनाने में, जिससे बीमारियों में कमी आती है।
4. फसल उत्पादन की लागत में कमी एवं आय में वृद्धि।
5. अंतरराष्ट्रीय बाजार की स्पर्धा में जैविक उत्पाद की गुणवत्ता का खरा उतरना।
क्यों ज़रूरी हैं स्वस्थ जीवन सुखी जीवन के लिए जैविक खेती?
👉 जैविक खेती, की विधि रासायनिक खेती की विधि की तुलना में बराबर या अधिक उत्पादन देती है। अर्थात जैविक खेती मृदा की उर्वरता एवं कृषकों की उत्पादकता बढ़ाने में पूर्णत: सहायक है। वर्षा आधारित क्षेत्रों में जैविक खेती की विधि और भी अधिक लाभदायक है।
👉 जैविक विधि द्वारा खेती करने से उत्पादन की लागत तो कम होती ही है इसके साथ ही कृषक भाईयों को आय अधिक प्राप्त होती है। तथा अंतराष्ट्रीय बाजार की स्पर्धा में जैविक उत्पाद अधिक खरे उतरते हैं। जिसके फलस्वरूप सामान्य उत्पादन की अपेक्षा में कृषक भाई अधिक लाभ प्राप्त कर सकते हैं।
👉 आधुनिक समय में निरन्तर बढ़ती हुई जनसंख्या, पर्यावरण प्रदूषण, भूमि की उर्वरता का संरक्षण एवं मानव स्वास्थ्य के लिए जैविक खेती की राह अत्यन्त लाभदायक है। मानव जीवन के सर्वांगीण विकास के लिए नितान्त आवश्यक है कि प्राकृतिक संसाधन प्रदूषित न हों, शुद्ध वातावरण रहे एवं पौषि्टक आहार मिलता रहे, इसके लिये हमें जैविक खेती की कृषि पद्धतियाँ को अपनाना होगा जो कि हमारे नैसर्गिक संसाधनों एवं मानवीय पर्यावरण को प्रदूषित किये बगैर समस्त जनमानस को खाद्य सामग्री उपलब्ध करा सकेगी तथा हमें खुशहाल जीने की राह दिखा सकेगी।
जैविक पद्धति द्वारा व्याधि नियंत्रण जो कृषकों के अनुभव, जो हमारे द्वारा एकत्रित किये गये निम्नलिखित है:-
1.कीटनाशी :-
सामग्री:-
लहसुन : 2 किलो
मिर्च : 2 किलो
प्याज : 2 किलो
अदरक : 500 ग्राम
हल्दी : 500 ग्राम
बनाने की विधि :-
लहसुन, मिर्च, प्याज, अदरक व हल्दी को पीसकर इसकी चटनी बना ली जाती है इस चटनी को 200 लीटर वेस्ट डी कंपोजर के घोल में मिलाकर छायादार स्थान पर 1 माह के लिए रख देते हैं तथा इसके पश्चात इस को काम में लिया जाता है।
उपयोग करने कि अवधि :- 3 साल
मात्रा :- 1-2L/16 पानी के साथ
उपयोगी :- सभी किट, थ्रीप्स, माइट्स पर प्रभावी।
2. कीटनाशी :-
सामाग्री :-
7 किलो तंबाकू के चूर्ण को 200 लीटर पानी में मिलाकर रख दें तथा 10 दिन तक दिन में तीन से चार बार हिलाए इस स्प्रे को जड़ों में उपयोग में लाए इसे सभी बीमारियों से बचाव किया जा सकता है अगर इसमें 50% चुने का पानी और मिलाया जाता है तो यह अधिक असर दायक होता है।
3. कीट नियंत्रण :-
लस्सी/ छाछ को मटके में भरकर 20 से 25 दिन तक पेड़ के नीचे जमीन में गड्ढा करके गाड़ दें तथा 20 से 25 दिन के पश्चात काम में ले।
उपयोगी :- इल्ली व फल छेदक कीड़ों के लिए प्रभावी।
मात्रा :- 500ml-1L/15L पानी में।
Note :- 3 किलो लहसुन की चटनी बनाकर 200 लीटर पानी में मिलाकर 15 दिन के लिए रख देते हैं तथा इसके पश्चात् इस घोल का स्प्रे करने पर सभी प्रकार के कीटों का नियंत्रण किया जा सकता है।
4. रस चूषक किट (हरा मच्छर हरा महू)के लिए :-
250ml निंबोली का काढा तथा 500ml से 1 लीटर ताजा लस्सी को 16 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
Note :- नीम का तेल 5 – 7ml प्रति 1 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करना रस शोषक कीटो तथा लटो के लिए प्रभावी होता है।
5. कीटों को भगाने व पौधों की बढ़वार के लिए :-
देसी गाय का के गोमूत्र का छिड़काव करें। गोमूत्र जितना ज्यादा पुराना होगा उतना ही असरदार असर दायक होगा किसी भी फसल में 15 – 20 दिन पर 3 – 4 बार छिड़काव करें।
मात्रा :- 300-500ml/ 16L पानी के साथ।
6. कवकनाशी :-
सामग्री:-
पानी : 200 लीटर
चूना : 10 किलो
बनाने की विधि :-
दोनों को मिलाकर 2-3 दिन रख देते हैं। उसके पश्चात् काम मे ले लिया जाता हैं।
मात्रा :- 1-2L/15L पानी के साथ
7. कवकनाशी (तुलसी) :-
500 ग्राम तुलसी की पत्तियां लेकर उन्हें 12 घंटे के लिए पानी में भिगोए उसके पश्चात उन्हें मिक्सी में पीसकर तथा छानकर 15 लीटर पानी में वेस्ट डी कंपोजर के साथ स्प्रे करें।
हर 7 से 10 दिन में स्प्रे करें।
Note :- छाछ में तांबे को 20 दिन तक डालकर रखें तथा इसके पश्चात 1 लीटर गोल को 16 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करने से पत्ती धब्बा रोग के नियंत्रण तथा फूल व फल बढ़ाने में मदद मिलती है।
8. दशपर्णी अर्क(कवकनाशी तथा कीटनाशी के रूप में) :-
सामग्री:-
पानी : 200 लीटर
आंक : 2 किलो
नीम + निर्गुड़ी : 2 – 2 किलो
धतूरा + अरंडी : 2 – 2 किलो
बेल + अमरूद की पत्ती : 2 – 2 किलो
कनेर + आम का पत्ता : 2 – 2 किलो
तंबाकू + भांग की पत्तियां : 1 व 2 किलो
हरी मिर्च चटनी + कांग्रेस ग्रास : 1 – 1 किलो
लहसुन चटनी + अदरक चटनी : 500 – 500 ग्राम
हल्दी पाउडर : 200 ग्राम
गोमूत्र : 20 लीटर
देसी गाय का गोबर : 2 किलो
बनाने की विधि :-
सभी सामग्री को एक बड़े ड्रम में मिला लिया जाता है। और 20 दिन बाद उपयोग में ले लिया जाता हैं।
मात्रा :- 2-3 L/15L डी कंपोजर के साथ। दिन में 2 बार स्प्रे करें।
9. पंचगव्य घोल :-
सामग्री:-
गाय गोबर : 5 किलो
गाय दही : 2 किलो
गाय घी : 500 ग्राम
गोमूत्र : 3 लीटर
गाय दूध : 2 लीटर
नारियल पानी : 2 लीटर
गुड : 500 ग्राम
बनाने की विधि :-
गाय के गोबर तथा दही को मिलाकर 4 दिन तक अलग रखना है उसके बाद में बची हुई सभी सामग्रियों को उसमें मिला देते हैं।
15 दिन में घोल तैयार हो जाता हैं।
मात्रा :- 500ml/15L वेस्ट डी कंपोजर के साथ।
10. पोषक तत्वों के लिए जीवामृत :-
सामग्री:-
वेस्ट डी कंपोजर घोल पानी के साथ : 180 लीटर
गोमूत्र(देसी गाय का) : 10 लीटर
गोबर(देसी गाय का) : 10 लीटर
गुड़ : 2 किलो
मिट्टी(बरगद,पीपल,नीम के नीचे की) : 1 किलो
बनाने की विधि :-
सभी सामग्री को एक बड़े ड्रम में मिला लिया जाता है तथा 7 दिन तक रोजाना इसको घुमाया जाता है। जिससे कि वह नीचे एकत्रित होकर जम न जाये। 7 दिन बाद उपयोग में लेते हैं।
मात्रा :- 2L/15L पानी के साथ।
उपयोग करने कि अवधि :- 10-12 दिन।
11. सूक्ष्म तत्वों के लिए :-
सामग्री:-
वेस्ट डी कंपोजर का घोल तैयार : 200 लीटर
बेसन (मिक्स दाल व अलसी) : 2 किलो
सरसों की खल : 2 किलो
बिनोला की खल : 2 किलो
गुड़ : 2 किलो
लोहा : 300 ग्राम
कॉपर : 300 ग्राम
संजीव मिट्टी : 500 ग्राम
गोमूत्र (देसी गाय का) : 5 लीटर
बनाने की विधि :-
सभी सामग्री को एक बड़े ड्रम में मिला लिया जाता है तथा 7 दिन तक रोजाना इसको घुमाया जाता है। जिससे कि वह नीचे एकत्रित होकर जम न जाये। 7 दिन बाद उपयोग में लेते हैं।
मात्रा :- 2 L/15L डी कंपोजर पानी के साथ।
12. बेल (गिरि) टॉनिक 🙁 पोटैशियम मैग्निशियम की पूर्ति के लिए)
सामग्री:-
बेसन का गूदा : 5 किलो
पानी : 5 लीटर
गुड : 200 ग्राम
बनाने की विधि :-
सभी सामग्री को मिलाकर 15 दिन के लिए छाया में रखें तथा उसके पश्चात काम में लेते हैं।
मात्रा :- 1L/15L पानी या वेस्ट डी कंपोजर के साथ।
Note :- केले में लकड़ी की राख में भी पोटाश की मात्रा होती है।
13.घन जीवामृत(पोषक तत्व व सूक्ष्म जीवाणुओं के लिए):-
सामग्री:-
देसी गाय का गोबर : 100 किलो
गोमूत्र : 5 लीटर
गुड़ : 2 किलो
संजीव मिट्टी : 1 किलो
बेसन : 2 किलो
बनाने की विधि :-
सभी सामग्रियों को थोड़े सूखे गोबर के साथ मिलाकर बिजाई से पहले खेत में डाल दें।
उपयोग :- 6 माह तक।
14. सूक्ष्म पोषक तत्वों के लिए :-
सामग्री :-
सहजन की पिसी हुई पत्ती : 12 किलो
गोमूत्र : 15 लीटर
वेस्ट डी कंपोजर या पानी : 100 लीटर
बनाने की विधि :-
सभी सामग्री को मिलाकर 7 दिन तक दिन में दो बार हिलाएं।
मात्रा :- 2 – 3L/ 15L वेस्ट डी कंपोजर के साथ।
15. सभी रोगों के बचाव के लिए :-
100 किलो गोबर की खाद के साथ 100 किलो नीम की खली कूटकर उसे मिक्स कर लेवे तथा इसे खेत में नमी के समय मिला दे । यह सभी रोगों के बचाव में उपयोगी होती है।
16. फुलवारी द्रव्य (परागण के लिए) :-
सामग्री :-
पानी : 200 लीटर
दालचीनी पाउडर : 200 ग्राम
गुड़ : 2 किलो
गन्ने का रस सादा : 3 लीटर
ताजा छाछ : 2 लीटर
शहद : 500 ग्राम
बनाने की विधि :-
सभी सामग्री को एक साथ मिला लेवे तथा घोल बना लेते हैं। जब फसल पर फूल आए तो उसी समय घोल का उस पर स्प्रे करें । जिससे मधुमक्खियां आकर्षित होती है और परागण की संख्या बढ़ती है।
उपयोग की अवधि :- 2 दिन।
Note :- ऊपर बताई गई सभी जैविक दवाइयां किसानों से ली गई सलाह से बताई गई है तथा इन्हें उपयोग में लेने से पूर्व एक बार अच्छे से जांच लें।
निष्कर्ष :
मैं आशा करता हूं कि आपको मेरे द्वारा दी गई यह जानकारी जरूर पसंद आयी होगी और मेरी हमेशा यही कोशिश रहती है कि ब्लॉग पर आए सभी पाठकों को कृषि संबंधित सभी प्रकार की जानकारी प्रदान की जाए जिससे उन्हें किसी दूसरी साइट या आर्टिकल को खोजने की जरूरत जरूरत ना पड़े। इससे पाठक के समय की भी बचत होगी और एक ही प्लेटफार्म पर सभी प्रकार की जानकारी मिल जाएगी। अगर आप इस आर्टिकल से संबंधित अपना कोई भी विचार व्यक्त करना चाहते हैं तो नीचे कमेंट बॉक्स में अपना सुझाव अवश्य दें।
Very nice content vikram ji
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Thanku for your valurable feedback
Reliable information बेहतरीन विक्रम जी
Thanks 😊🙏
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Good to know about Organic Farming Thnx Agro tutorial for providing such information to us…..!