किसान आंदोलन क्यों कर रहे है? । Farmers protest। New APMC Act।

कहां छुपा के रख दू अपने हिस्से की शराफत जिधर भी देखो उधर बेईमान खड़े हैं, क्या खूब तरक्की कर रहा है देश खेतों में बिल्डर और सड़कों पर किसान खड़े हैं।

नमस्कार दोस्तों मैं विक्रम चौधरी इस आर्टिकल को वीडियो में देखना चाहते हो तो आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें और हमारे यूट्यूब चैनल को subscribe करें। 

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बात करेंगे किसान आंदोलन और एपीएमसी एक्ट की क्या किसान आंदोलन एक राजनीतिक शह से हो रहा है या इसके पीछे कोई षड्यंत्र रचा जा रहा है या राजनीतिक कारणों से दूर होकर यह आंदोलन वास्तव में किसानों के हित में किया जा रहा है तो आइए शुरू करते हैं और समझते हैं।

कुछ लोग कह रहे हैं कि यह आंदोलन पंजाब और हरियाणा के किसानों के द्वारा ही किया जा रहा है इसमें सबसे ज्यादा किसान हरियाणा और पंजाब के ही भाग ले रहे हैं तो पहली बात मैं आपको बता दूं पंजाब और हरियाणा की इकोनॉमी एग्रीकल्चर बेस्ड है दूसरी बात सेंट्रल गवर्नमेंट बल्क में गेहूं की खरीद करती है हरियाणा अकेला 60 प्रतिशत बासमती चावल का उत्पादन करता है इसके साथ पंजाब ⅔ बहुमत के साथ गेहूं का उत्पादन करता है इसको जब सेंटर गवर्नमेंट स्टेट गवर्नमेंट से बल्क में गेहूं और चावल खरीद करती है तो इसके बदले सेंट्रल गवर्नमेंट स्टेट गवर्नमेंट को 1.8 प्रतिशत टैक्स देना पड़ता है इसमें 2.5 प्रतिशत टैक्स एपीएमसी मंडी को जाता है तथा 6% टैक्स डाइरैक्ट स्टेट गवर्नमेंट को जाता है। अगर अकेले पंजाब की बात करें तो पिछले साल यह टेक्स 3600 करोड़ रुपए था। एग्रीकल्चर सेक्टर पंद्रह प्रतिशत जीडीपी में कंट्रीब्यूट करता है यहां 45 प्रतिशत लोग डायरेक्टर एग्रीकल्चर पर निर्भर है और पंद्रह प्रतिशत लोग इनडायरेक्ट कृषि पर निर्भर है तो इस पूरे आंदोलन को एपीएमसी एक्ट को में आपको कुछ हिस्सों में समझाऊंगा तो प्लीज दोस्तों आप इस आर्टिकल को इसकी मत कीजिए और लास्ट तक जरूर पढ़ना।

Q1. क्या किसान अब मंडी के बाहर अपना माल बेच सकता है? 

उत्तर- आपको मैं बता दूं बिल्कुल किसान अपना माल मंडी के बाहर बेच सकता है लेकिन आप पूछेंगे कि फिर गलत क्या है? इसके लिए मैं आपको पहले एक उदाहरण देकर समझाता हूं जब jio कंपनी मार्केट में आई थी शुरुआत में इसने अपनी मार्केट में मोनोपोली क्रिएट करने के लिए और अपना मार्केट में स्थान बनाने के लिए वोडाफोन आइडिया एयरटेल जैसी कंपनियों को टक्कर देनें के लिए सबसे पहले Jio ने फ्री ऑफर निकाला उसके बाद Jio ने ₹100 फिर 200रुपए और आज सभी कंपनियों के बराबर वह पैसे चार्ज कर रही है अर्थात कोई भी कंपनी शुरुआत में अपना मार्केट में मोनोपोली और अपना स्थान मजबूत करने के लिए सबसे पहले वह ऑफर देती है। मैं Jio का कोई विरोध नहीं करता मैं Jio का उदाहरण देकर आपको कृषि कानूनों को समझाने की कोशिश कर रहा हूं। आपने जिओ की स्ट्रैटजी समझी अब समझते हैं कृषि कानूनों को जैसे ही कंपनियां मार्केट में आएगी प्राइवेट कंपनियां तो किसानों को सबसे पहले यह मंडी से ज्यादा पैसा देगी जिससे किसान मंडी न जाकर उन्हीं  प्राइवेट कंपनियों के पास अपना माल बेचने जाएगा अगर किसान प्राइवेट कंपनियों के पास ही जाएगा तो मंडी के पास टैक्स और रेवेन्यू नहीं पहुंचेगा और टैक्स और रेवेन्यू मंडी के पास नहीं जाएगा तो यह मंडियां धीरे-धीरे 5 साल 10 साल में धीरे-धीरे खत्म हो जाएगी उसके बाद जब यह मंडी खत्म हो जाएगी यह कंपनियों का असली गेम स्टार्ट होगा यह कंपनियां उसके बाद किसानों को अपने मनमर्जी के भाव देगी क्योंकि किसान के पास इसके अलावा कोई ऑप्शन नहीं रहेगा क्योंकि मंडियां पहेले खत्म हो चुकी होगी यह कंपनियां फिर किसान को अपने मनमर्जी के भाव प्रोवाइड करवाएगी और किसान को मजबूरी में उनको बेचना ही पड़ेगा 

Q 2- एमएसपी की गारंटी क्यों चाह रहा है?

उत्तर- किसान लोग कह रहे हैं कि एमएसपी(MSP) की गारंटी पिछले 70 साल में किसी सरकार ने नहीं दी तो मैं आपको यही बताना चाहता हूं कि यह कानून भी पिछले 70 साल में किसी सरकार ने नहीं बनाए तो किसान एमएसपी की गारंटी इसलिए चाह रहा है क्योंकि मैंने आपको इससे पहले समझाया कि प्राइवेट कंपनियां किस तरह से मंडे खत्म होने के बाद अपने मनमर्जी करेगी इसी मनमर्जी से बचने के लिए किसान एमएसपी की गारंटी चाह रहा है कि जब मंडी खत्म हो जाएगी या नहीं भी होगी तो इन प्राइवेट कंपनियां किसानों को कम से कम एमएसपी की प्राइस पर उनका उत्पादन खरीद लें।

अब देश की हालत यह हो गई है कि :-

A) 1 लीटर पानी की बोतल 20 रुपए में बिकने लगी है तो किसी को कोई दिक्कत नहीं 

B) 50 ग्राम आलू की चिप्स बीस रुपए में बिकने लगी है किसी को कोई दिक्कत नहीं 

C) 1 किलो टमाटर से बनी सोस की बोतल ₹100 में बिकने लगी है तो किसी को कोई दिक्कत नहीं 

D) एक डॉक्टर ₹500 मुंह दिखाई के लेता है अर्थात एंट्री फीस तो किसी को कोई दिक्कत नहीं 

E) यहां तक कि स्कूल मनमर्जी के फीस वसूल करता है तो भी किसी को कोई दिक्कत नहीं है 

F) यहां तक की दुकानों में भी फिक्स रेट लिखे होते हैं तो भी किसी को कोई दिक्कत नहीं लेकिन जब किसान का गेहूं तीन हजार प्रति क्विंटल और दूध 60 रुपए प्रति लीटर बिकने की बात आती है तो बयान आता है कि देश की जनता खाएगी क्या व्यापारियों और पूंजीपतियों को मिले तो किसी को कोई दिक्कत नहीं और देश के अन्नदाता को मिले तो इस देश के लोगों का दर्द उठने लगता है।

Q 3 – स्टॉक लिमिट खत्म करने से किसानों पर और आम जनता पर क्या प्रभाव पड़ेगा?

उत्तर- सबसे पहले मैं आपको बताना चाहता हूं कि इससे पहले आप जब भी देखते होंगे पहले बीच के बिचौलिये होते थे वह बीच में आलू प्याज का स्टॉक कर लेते थे और जब यह बाजार में इनका भाव पिक(बहुत ज़्यादा) पर पहुंच जाता था उसके बाद ही अपना स्टॉक खाली करते थे और अच्छा मोटा मुनाफा कमाते थे लेकिन सरकार के पास उस समय यह अधिकार होता था कि उन बिचौलियों पर कानूनी कार्रवाई कर सके और उनको जेल में डाल सके। लेकिन इसी को अब मोदी सरकार ने खत्म कर दिया है अब नए कानून में जब तक महंगाई 100% नहीं बढ़ जाएगी तब तक आप उन पर कोई कार्रवाई नहीं कर सकते अर्थात ₹50 में बिकने वाली चीज 100 रुपए की हो जाएगी तब तक आप उनके खिलाफ कोई कानूनी कार्रवाई नहीं कर सकते अर्थात्‌ इसका सीधा गौरतलब है कि देश में महंगाई दोगुनी हो जाएगी और यह मार किसान को नहीं आम जनता को पड़ेगी और इसकी मार सब को झेलनी पड़ेगी और उन लोगों को भी झेलनी पड़ेगी जो आज यह कह रहे हैं कि किसान आज किसी के बहकावे में या पॉलिटिकल पार्टियों के चक्कर में आकर यह आंदोलन कर रहे हैं उनको भी धीरे-धीरे इस कानून के नुकसान समझ में आ जाएंगे ।

Q 4 – अगर कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग बहुत पहले से हो रही है तो अब किसानों को दिक्कत क्यों है ? 

उत्तर- पहले कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के अंतर्गत अगर किसान के साथ कोई भी कंपनी कांटेक्ट करके अपने कॉन्ट्रैक्ट से मुकर जाती थी तो किसान के पास यह अधिकार होता था कि वह हाई कोर्ट सुप्रीम कोर्ट में जाकर अपने अपील दायर कर सकता है इसका एक उदाहरण है 2008 में नौ किसानों के साथ पेप्सीको कंपनी ने एक करार किया कॉन्ट्रैक्ट किया उसके बाद वह कंपनी उन किसानों से आलू लेने से मना कर दी उसके पश्चात उन किसानों ने हाइकोर्ट में सुप्रीम कोर्ट में अपील की और प्रति किसान 1-1 करोड़ रुपये मुआवजे की मांग की लेकिन इस कानून में नए कानून में इस को खत्म कर दिया गया है अथार्त कोई भी कंपनी अपने कॉन्ट्रैक्ट से मुकर जाती है किसान से कांटेक्ट करके व कॉन्ट्रैक्ट आगे नहीं निभाती है तो किसान अब सुप्रीम कोर्ट हाई कोर्ट में नहीं जा सकता किसान केवल एसडीएम तक जा सकता है । अगर एसडीएम के फैसले से किसान खुश नहीं है तो उसके आगे किसान कोई अपील नहीं कर सकता किसान को मजबूरन उस एसडीएम का फैसला स्वीकार करना ही होगा।

मैं तीन सवाल सरकार से पूछना चाहता हूं और आप लोगों को भी पूछना चाहिए।

1. वन नेशन वन कॉन्स्टिट्यूशन वन मार्केट सब वन-वन है तो फिर मंडियां दो क्यों?

2. सरकार  MSP की बात करती है तो सरकार बताए कि कितने प्रतिशत किसानों से उनका अन्न सरकार एमएसपी पर खरीद करती है?

 3. अगर सरकार को किसानों का भला ही करना है तो कृषि यंत्रों पर लगा हुआ 5-28 प्रतिशत तक का टैक्स सरकार माफ करें और डीजल पर चार से पांच गुना टैक्स जो सरकार ले रही है उसको माफ करें। 

अगर सरकार किसानों से 28 प्रतिशत टैक्स ले रही है तो सरकार को भी किसानों को उसके फसल का एमएसपी में 28 प्रतिशत जोड़कर उसका समर्थन मूल्य देना चाहिए।

और अंत में आपको यही कहना चाहता हूं कि 

खेत से बढ़कर कोई फैक्ट्री नहीं, 

अनाज से बढ़कर कोई प्रोडक्ट नहीं,

किसान से बढ़कर कोई उद्योगपति नहीं,

और सरकार से बढ़कर कोई ठग नहीं।

तो आओ लौट चले उन खेतों की ओर जहां अपने पुरखों के पांवों के निशान मिलेंगे। तो दोस्तों अगर आपको यह आर्टिकल अच्छा लगा हो तो इसको लाइक कीजिए और शेयर कीजिए।

निष्कर्ष

मैं आशा करता हूं कि आपको मेरे द्वारा दी गई यह जानकारी जरूर पसंद आयी होगी और मेरी हमेशा यही कोशिश रहती है कि ब्लॉग पर आए सभी पाठकों को कृषि संबंधित सभी प्रकार की जानकारी प्रदान की जाए जिससे उन्हें किसी दूसरी साइट या आर्टिकल को खोजने की जरूरत जरूरत ना पड़े। इससे पाठक के समय की भी बचत होगी और एक ही प्लेटफार्म पर सभी प्रकार की जानकारी मिल जाएगी। अगर आप इस आर्टिकल से संबंधित अपना कोई भी विचार व्यक्त करना चाहते हैं तो नीचे कमेंट बॉक्स में अपना सुझाव अवश्य दें।

                   यहां आने के लिए धन्यवाद।

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